Saturday, October 13, 2007

राजनीतिक भूल है लुधियाना मेट्रो रेल समझौता

यद्यपि पंजाब सरकार ने लुधियाना में मेट्रो रेल सेवा शुरू करने संबंधी दिल्ली मेट्रो रेल सेवा कारपोरेशन के साथ किए समझौते (एमओयू) को ऐतिहासिक करार दिया है और साथ ही कहा है कि इससे पंजाब तीव्र गति परिवहन के अति आधुनिक दौर में शामिल हो जाएगा, लेकिन सवाल यह उठता है कि सरकार का यह कदम कितना प्रासंगिक व उचित है। इस बात पर बहस होनी चाहिए कि कहीं यह प्रोजेक्ट पंजाब के लिए अति आधुनिक तकनीक के बजाय पोस्टमार्टम तकनीक तो नहीं साबित होगा। इस समझौते से यह स्पष्ट है कि सत्तारूढ़ दल के नेता राज्य के माथे पर ऋण के बोझ को अनावश्यक रूप से बढ़ाएंगे। और यह प्रोजेक्ट भविष्य में एक बड़ी भूल के रूप में सामने आएगी, जिसे आज सियासी नेताओं द्वारा बिना ठोस योजना के जानबूझकर थोपा जा रहा है। वर्णनीय है कि पंजाब के वित्त मंत्री पहले ही कई बार जिक्र कर चुके हैं कि सूबे की मौजूदा वित्तीय हालत ठीक नहीं है। ऐसे में इस प्रोजेक्ट पर आने वाली 3000 करोड़ रुपये की लागत का भार कहां से और किन स्रोतों से वहन किया जाएगा। बहरहाल, इस प्रोजेक्ट को लेकर इतनी भारी भरकम राशि का एस्टीमेशन वास्तविकता से जुड़ा प्रतीत नहीं होता है क्योंकि इसमें अन्य खर्चो के अलावा समय के साथ बढ़ने वाली लागत को शामिल नहीं किया गया है। मेट्रो जैसे बड़े प्रोजेक्ट को लेकर फंड के मद में हर बारीक पहलुओं का ध्यान रखा जाता है लेकिन इस समझौते में ऐसा कुछ भी नहीं है। जोकि अंतत: अपने निर्माण की अवधि में राज्य के खजाने पर भारी वित्तीय बोझ ही बनेगी। सरकार के इस फैसले के बाद आतंकवाद के दिनों में राज्य सरकार पर पड़ा वित्तीय बोझ भी इस प्रोजेक्ट पर आने वाली लागत के समक्ष बौना दिख रहा है। लुधियाना, मोहाली, अमृतसर जैसे शहरों में रेल आधारित तीव्र परिवहन व्यवस्था बनाने की बजाय द्रुतगामी सड़क परिवहन व्यवस्था को तवज्जो देना बेहतर विकल्प साबित होगा। इसके लिए मौजूदा सड़क व्यवस्था के इंफ्रास्ट्रक्चर में ज्यादा परिवर्तन भी नहीं करना होगा। इसी में कुछ आमूलचूल परिवर्तन कर तीव्र सड़क परिवहन व्यवस्था के तौर पर इसे विकसित किया जा सकता है। वैसे भी बस आधारित तीव्र परिवहन व्यवस्था (एमआरटीसी) मेट्रो की तुलना में शहर के 80 फीसदी यात्रियों को बेहतर यातायात सुविधा प्रदान कर सकती है। गौरतलब है कि एक किमी. एलिवेटेड मेट्रो रेल लाइन के निर्माण की लागत ग्रेड आधारित बस लेन के निर्माण की तुलना में 35 गुणा ज्यादा आती है। वहीं मेट्रो का निर्माण शहर की स्काईलाइन को भी प्रभावित करेगा। उदाहरण के तौर पर लुधियाना के चौरा बाजार में निर्मित फ्लाई ओवर ने सिटी स्ट्रक्चर को बुरी तरह तहस नहस करके रख दिया और उसके बावजूद यातायात जाम की समस्या से निजात नहीं मिल सकी है। मेट्रो के निर्माण से शहर की सामाजिक व भौतिक ढांचे को बहुत हद तक बदलना पड़ेगा, जिससे सामाजिक असंतुलन भी पैदा होगा और उद्देश्य भी सफल नहीं हो पाएंगे। बहस का एक पहलू यह भी है कि मेट्रो का निर्माण भविष्य की जरूरत को ध्यान में रखकर किया जाता है ताकि लोगों को यातायात संबंधी दिक्कतें न हों। लेकिन यहां तो स्थिति ठीक इसके उलट है। मौजूदा यातायात समस्या को बेहतर मास्टर प्लान बनाकर भी खत्म किया जा सकता है। पंजाब को उन जगहों से सीख लेने की दरकार है जहां पहले से मेट्रो रेल चल रही हैं। दिल्ली में मेट्रो सुविधा चालू होने के बावजूद आज सड़कों पर कुल यातायात में बस परिवहन की भूमिका साठ फीसदी है। दिल्ली मेट्रो के पहले चरण में 65 किमी. के तीन लाइन के निर्माण में कुल 10571 करोड़ रुपये की लागत आई। (जो दस 747-बोइंग विमान की कीमत के बराबर है) और अभी दिल्ली मेट्रो में रोजाना 7.5 लाख यात्री सफर करते हैं जो दिल्ली की कुल आबादी का एक फीसदी भी नहीं है। वर्ष 2011 तक 20848 करोड़ रुपये की लागत से बनने वाली कुल 213.7 किमी. की दिल्ली मेट्रो से आनुपातिक तौर पर सिर्फ दो फीसदी आबादी लाभान्वित हो पाएगी जो कतई बेहतर परिवहन विकल्प नहीं है। वहीं दिल्ली मेट्रो उम्मीद के मुताबिक यात्रियों को आकर्षित नहीं कर पाई है। दिल्ली मेट्रो के इन आंकड़ों से स्पष्ट है कि यह सिर्फ इंट्रा सिटी परिवहन के लिए ही उपयुक्त है न कि इंटर सिटी परिवहन के लिए। लुधियाना में आबादी का घनत्व 804 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी. है जबकि दिल्ली में आबादी का घनत्व 9296 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी. है। लुधियाना से 11 गुणा आबादी घनत्व ज्यादा होने के बावजूद दिल्ली मेट्रो में यात्रियों की कुल अनुमानित संख्या के आधे लोग भी सफर नहीं कर रहे हैं। ऐसे में यह सवाल लाजिमी है कि लुधियाना में यह प्रोजेक्ट कितना सफल हो पाएगा, वह भी तब जब शहर में सड़कों की कनेक्टीविटी अच्छी है। पंजाब सरकार का लुधियाना में मेट्रो रेल प्रोजेक्ट किसी दृष्टिकोण से उपयोगी नहीं है और मैं उम्मीद करता हूं कि सरकार अपनी गलत नीतियों व योजना में सुधार करके दूसरे मेट्रो शहरों की तरह लुधियाना का वह हश्र नहीं करेगी। (लेखक आईआईटी दिल्ली में ट्रांसपोर्टेशन इंजीनियर हैं)

Dainik Jagran, 13th October, 2007, Page 7
http://epaper.jagran.com/main.aspx?edate=10/13/2007&editioncode=41&pageno=7#

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