Thursday, December 27, 2007

मुद्दा एशिया की सबसे बड़ी ऊन मंडी फाजिल्का की दुर्दशा

फाजिल्का-कभी एशिया की सबसे बड़ी ऊन मंडी का गौरव प्राप्त करने वाली फाजिल्का ऊन मंडी वर्तमान में सरकारी अनदेखी के चलते दुर्दशा की शिकार होकर रह गई है। एक वक्त था जब इस मंडी में राजस्थान व हरियाणा तक और पाकपटन जो अब पाकिस्तान में है, की ऊन बिकने यहां आया करती थी। तब ऊन की खरीद फरोख्त के लिए ऊन बाजार बनाया गया था जो है तो आज भी लेकिन अब वहां ऊन का नामोनिशां तक नहीं है। इस मंडी के पतन का मुख्य कारण भेड़ पालकों को प्रोत्साहन न मिलना है।
उल्लेखनीय है कि फाजिल्का ऊन मंडी कभी एशिया की सबसे बड़ी ऊन मंडी हुआ करती थी। आजादी से पहले यहां बिकने वाली ऊन अंग्रेजों द्वारा एशिया में व्यापार के लिए बनाए गोल्डन रेल ट्रैक के जरिये अन्य एशियाई देशों में निर्यात होती थी। यही कारण था कि हर राज्य के ऊन व्यापारी फाजिल्का मंडी को ही पहल दिया करते थे। ऊन के विशाल व्यवसाय के चलते यहां ऊन की साफ सफाई व कताई के लिए कई प्रेस फैक्ट्रियां भी लग गई थीं। प्रेस फैक्ट्रियां लगाने की शुरुआत भी अंग्रेजों ने ही की थी। अंग्रेजों की प्रेस फैक्ट्री के अलावा यहां राम प्रेस, ओम प्रेस, अशोका काटन फैक्ट्री में भी ऊन की साफ सफाई व कताई का कार्य चलता था जो आजकल बंद हो चुकी है। आज आलम यह है कि कभी ऊन के लिए विख्यात फाजिल्का मंडी में ही आज ऊन अपनी पहचान के लिए मोहताज है। इस ऊन मंडी की इतनी दुर्दशा हुई है कि ऊन के व्यापार के लिए बने यहां के ऊन बाजार में आज ऊन की एक भी दुकान नहीं है। हालांकि एक वृद्ध ऊन व्यापारी आज भी ऊन बाजार में अपनी दुकान पर बैठा नजर आता है, लेकिन वह ऊन की बिक्री की बजाए ऊन के व्यापार के सुनहरी दिनों को ही याद करता है।
फाजिल्का ऊन मंडी की दुर्दशा का प्रमुख कारण सरकार द्वारा भेड़ पालकों को सुविधाएं न देना है। कभी अपनी भेड़ों से पैदा ऊन के जरिये फाजिल्का मंडी को एशिया में नंबर वन बनाने वाले भेड़ पालक आज रोटी के लिए मोहताज है। लेकिन जब यह व्यवसाय अपने सुनहरी दौर में था, तब बड़े बड़े जमींदार भी खेतीबाड़ी के सहायक धंधे के तौर पर भेड़े पाला करते थे, लेकिन आज भेड़ों को चराने के लिए चरागाहों की कमी हो गई है। इसके चलते जमींदारों ने तो भेड़ें पालना छोड़ ही दिया और गरीब चरवाहे जिन्होंने अपनी भेड़े बना रखी है, वह सौ, पचास भेड़ों से साल भर में होने वाली तीन से चार हजार रुपये की आमदनी से अपने परिवार का गुजारा चलाने में असमर्थ है और दिहाड़ी करने पर मजबूर है। उन्हे सबसे बड़ी परेशानी सरकारी सहायता न मिलने की है। अगर सरकार अन्य कृषि कर्जो की तर्ज पर ऊन उत्पादन करने वालों को कर्ज व भेड़ों की चिकित्सा जैसी सुविधाएं दे तो ऊन का व्यवसाय फिर से फाजिल्का को एशिया के नक्शे पर विशिष्ट पहचान दिला सकता है।
http://in.jagran.yahoo.com/news/local/punjab/4_2_4001730.html

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