Wednesday, May 4, 2011

सूरज को साधने की धुन

अमृत सचदेवा, फाजिल्का

सूरज की तपिश से सूरज ही बचाएगा। खाना भी बनाएगा, ठंडी हवा भी दिलाएगा। बस उसकी ऊर्जा के सही इस्तेमाल का तरीका आना चाहिए। ऐसे ही तरीके डा. भूपेंद्र सिंह ने ईजाद किए हैं। उन्होंने सोलर कूलर बनाया है। ऊर्जा संरक्षण की दिशा में उनके योगदान व आविष्कारों की वजह से उन्हें ऊर्जा पुरुष के खिताब से नवाजा जा चुका है।

आईआईटी रूड़की से बतौर प्रोफेसर सेवानिवृत्त डा. भूपेंद्र सिंह अपने पैतृक शहर फाजिल्का में ऊर्जा संरक्षण की दिशा में नई खोज करने के साथ खुद भी ऊर्जा संरक्षण के प्रयासों की मिसाल बने हुए हैं। हर काम की शुरुआत अपने घर से होती है। 72 वर्षीय डा. सिंह ने अपने घर को ऊर्जा भवन का ही रूप दे दिया है। उन्होंने आम प्रचलित महंगे सोलर कूकर की जगह बेहद किफायती उपकरण खुद तैयार किए हैं। पिछले दिनों डा. भूपेंद्र ने सोलर ऊर्जा से चलने वाला पंखा बेहद कम खर्च में तैयार कर उसका प्रदर्शन किया था और अब वह अपनी टीम के साथ सौर ऊर्जा से चलने वाले कूलर के निर्माण में लगे हैं।

डा. भूपेंद्र ने बताया कि इस वेपोरेटेड कूलर में छोटा सबमर्सिबल पंप व एक छोटा एग्जास्ट फैन लगाया गया है। दोनों में अधिकतम 80 वाट ऊर्जा की खपत होती है। इन दिनों पड़ने वाली भीषण गर्मी में यह कूलर दिन भर 12 गुणा 10 फुट के कमरे को आधे टन वाले एसी जितनी ठंडक दे सकता है। यह खोज पूरी हो चुकी है। इसका प्रदर्शन वह एक सप्ताह में कर देंगे।

वेपोरेटेड कूलर के प्रोजेक्ट पर काम कर रहे हैं, उस कूलर के सिद्धांत की प्रथम थ्यूरी भी डा. सिंह ने ही 1967 में अपने साथी डा. राजेंद्र सूरी के साथ क्लाइमेट कंट्रोल दिल्ली के लिए लिखी थी। अब उस आविष्कार को आगे बढ़ा रहे हैं। सोलर एनर्जी चालित वेपोरेटेड कूलर के प्रोजेक्ट में उनके साथ बलविंदर सिंह, विक्की काठपाल, साहिल गगनेजा व गगन सिंह काम कर रहे हैं।

डा. भूपेंद्र सिंह खुद भी ऊर्जा संरक्षण के प्रयासों की मिसाल हैं। वह 72 वर्ष की उम्र में भी साइकिल पर ही कहीं आते जाते हैं। वह अपने साथ फोल्ड होने वाली साइकिल रखते हैं। बैग से फोल्डिंग साइकिल निकालते हैं और चल पड़ते हैं मंजिल की ओर।

डा. सिंह उत्तराखंड में ग्रेविटी रोप-वे का प्रोजेक्ट सफलतापूर्वक स्थापित करवा चुके हैं। इसके लिए उत्तराखंड सरकार ने उन्हें 11 अप्रैल 2007 में ऊर्जा पुरुष के खिताब से नवाजा था। डा. सिंह फाजिल्का में रिक्शा चालक का भार कम करने में सहायक ईको कैब रिक्शा, फाजिल्का फिमटो रिक्शा का आविष्कार भी कर चुके हैं।

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